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सतगुरु बिना मोक्ष सम्भव नहीं है .....

 ऋषिजनों ने हजारों वर्ष  ॐ नाम का जाप किया परमात्मा प्राप्ति के लिए। परमात्मा मिला नहीं क्योंकि गीता अध्याय 11 श्लोक 47.48 में लिखा है कि वेदों में (चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) वर्णित भक्ति विधि से ब्रह्म प्राप्ति नहीं है। इसलिए इससे ऋषियों में सिद्धियाँ प्रकट हो
जाती हैं। अज्ञानता के कारण उसी भूल-भूलइया को ये भक्ति की उपलब्धि मान बैठे। जिस कारण से भक्ति करके भी उस पद को नहीं प्राप्त कर सके, जहाँ जाने के पश्चात् पुनः जन्म नहीं होता क्योंकि इनको तत्वदर्शी सन्त नहीं मिले।

 सूक्ष्म वेद में कहा कि :-
कबीर, गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुस छडे़ मूढ़ किसाना।
गुरू बिन वेद पढे़ जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी।।
गरीब, बहतर क्षौणी खा गया, चुणक ऋषिश्वर एक।
देह धारें जौरा फिरें, सबही काल के भेष।।
भावार्थ :- तत्वदर्शी सन्त गुरू न मिलने के कारण जो साधना साधक करते हैं, वह शास्त्रा विधि त्यागकर मनमाना आचरण होता है जिससे कोई लाभ साधक को नहीं होता। गीता अध्याय 16 श्लोक 23.24 में प्रमाण है कि हे भारत! जो साधक शास्त्राविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करता है, उसको न तो सुख होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और न ही उसकी गति अर्थात् मोक्ष होता है। इससे तेरे
लिए शास्त्रा ही प्रमाण हैं कि कौन-सी साधना करनी चाहिए और कौन-सी नहीं करनी चाहिए।
गुरू बिना अर्थात् तत्वदर्शी सन्त के बिना चाहे वेदों को पढ़ते रहो, चाहे उनको कण्ठस्थ भी करलो जैसे पहले के ब्राह्मण वेदों के मन्त्रों को याद कर लेते थे। जो चारों वेदों के मन्त्रा याद कर लेता था, वह चतुर्वेदी कहलाता था। जो तीन वेदों के मन्त्रों को याद कर लेता था, वह त्रिवेदी कहलाता था। परंतु उनको वेदों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान न होने के कारण वे ऋषिजन वेदों को पढ़कर-घोटकर भी अज्ञानी रहे ।

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