गलत भक्ति और नास्तिकता

गलत भक्ति हमें नास्तिकता की ओर ले जाती है .....


गलत भक्ति से तात्पर्य है बिना शास्त्र प्रमाणित भक्ति के  किसी भी प्रभु की कहानियां सुनकर उसी में आस्था करके उसे प्राप्त करने के लिए पूजा में लीन होना और उसी भक्ति को सर्वोपरि मानना ....
अंततः सही भक्ति नहीं होने के कारण कुछ भी लाभ नहीं होता है और मन भक्ति करने से दूर होता चला जाता है जिससे मनुष्य नास्तिक हो जाते है उनकी भगवान के प्रति कोई आस्था नहीं रहती है
 नास्तिक लोग ईश्वर (भगवान) के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण न होने कारण झूठ करार देते हैं किसी भी भगवान में कोई रुचि नहीं रहती है जिससे वह भगवान से दूर होते जाते है 
और अपना मानव जीवन व्यर्थ कर देते है जिससे मनुष्य को आगे के जन्मो में भी कष्ट भोगना पड़ता है ।

 मानुष जन्म पाए कर ,जो नहीं रटे हरि नाम ।
जैसे कुआं जल बिना , बनवाया क्या काम ।।

भक्ति गलत है या सही इसका प्रमाण हम हमारे सतग्रन्थों में देख सकते है और पता लगा सकते है ....
पवित्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 16 श्लोक 23 में लिखा है जो साधक शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है यानी किसी को देखकर या किसी के कहने से भक्ति साधना करता है तो उसको न तो कोई सुख प्राप्त होता है ना कोई सिद्धि यानी भक्ति की शक्ति प्राप्त होती है ना उसकी गति होती है इन्हीं तीन लाभों के लिए साधक साधना करता है जो मनमानी शास्त्र विरुद्ध साधना से नहीं मिलते ।
 विचारणीय बात यह है कि आज कैसे पता चलेगा कि सत भक्ति कौन दे रहा है जिस भक्ति से हमें पूर्ण परमात्मा का पता लग सके जो संत शास्त्र अनुकूल भक्ति बता रहा है तथा उनसे करने से लाभ मिल रहा है वही संत सच्चा है तथा भक्ति सही है
 ऐसे संत वर्तमान में केवल एक ही है जो संत रामपाल जी महाराज है यही वह संत है जो वेदों शास्त्रों पुराणों आदि सभी सद्ग्रन्थों में प्रमाणित भक्ति विधि बता रहे हैं अधिक जानकारी के लिए आप भी उनके द्वारा लिखित पुस्तक ज्ञान गंगा पढ़े और ज्ञान को समझें और सतभक्ति करें व अपना मानव जीवन सफल बनायें।

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