हमारे शास्त्र और सतभक्ति
आज तक हम सभी देवी देवताओं की भक्ति करते आये है फिर भी हम दुःखी है लेकिन क्यों सोचा है कभी
आज पढ़े हुए लोग भी इस अंध भक्ति में लगे है और कभी नही जाना की भक्ति सही भी है या नही
बिना कुछ सोचे ही लगे है हम पुरानी पीढ़ियों की लीक पीटने
पर ये एक बार भी नही जाना कि क्या जो पंडित हमे भक्ति विधि बता रहे है वो शास्त्र प्रमाणित है
हम तो सिर्फ लगे है मनमानी साधना करने में लेकिन मनमानी साधना करने के लिए शास्त्रों में क्या लिखा है वो आप देखिए प्रमाण सहित 👇👇👇
श्रीमद्भगवत गीता के अध्याय 16 श्लोक 23,24 में स्पष्ट निर्देश है कि जो साधक शास्त्रों में वर्णित भक्ति की क्रियाओं के अतिरिक्त साधना व क्रियाऐं करते हैं, उनको न सुख की प्राप्ति होती है, अर्थात् व्यर्थ पूजा बतायी है ।
भेको के लस्कर फीरे ,ये वाणी चोर कठोर ।
सतगुरु धाम ना पहुंचेंगे ,ये चौरासी के ढोर ।।
सतगुरु धाम ना पहुंचेंगे ,ये चौरासी के ढोर ।।
पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब है जो सतलोक में साकार रूप में रहता है। गीता जी चारों वेदों भी उसी सतपुरुष पूर्ण ब्रह्म कबीर की तरफ इशारा करती है।
और हमें तो आज तक केवल ब्रह्मा विष्नु महेश तक ही सीमित रखा था की इनसे ऊपर कोई नही है पर गीता जी मे लिखा है
और हमें तो आज तक केवल ब्रह्मा विष्नु महेश तक ही सीमित रखा था की इनसे ऊपर कोई नही है पर गीता जी मे लिखा है
- गीता जी के अ. 15 के श्लोक नं. 16.17, अ. 18 के श्लोक नं. 46, 62 अ. 8 के श्लोक नं. 8 से 10 तथा 22 में, अ. 15 के श्लोक नं. 1,2,4 में उसी पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने का इशारा किया है ।
- कुरान शरीफ में सूरत फूर्कानि नं. 25 की आयत नं. 52 से 59 तक में कबीरन्, खबीरा, कबीरू आदि शब्द लिख कर उसी एक कबीर अल्लाह की के बारे में बताया हुआ है ।
अर्थात हम आज तक जिन तैतीस करोड़ देवी देवताओं को पूजते थे वो तो पूर्ण परमात्मा थे ही नही और वास्तविक को तो जाना ही नही था की वो परमात्मा कबीर है ।
कोई कहै हमारा राम बड़ा है, कोई कहे खुदाई रे।
कोई कहे हमारा ईसामसीह बड़ा, ये बाटा रहे लगाई रे।।‘‘
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