God Kabir Prakat Diwas
कबीर साहेब प्रकट दिवस क्यों मनाया जाता है ....🌹🌹
भारत देश (जम्बू द्वीप) के काशी नगर (बनारस) में नीरु-नीमा नाम के पति-पत्नी थे। वे मुसलमान जुलाहा थे। वे निःसंतान थे।
गरीब दास जी को परमात्मा कबीर साहेब ने अपने प्रकट होने की लीला बताई 👇👇👇
ज्येष्ठ सुदी पूर्णमासी की सुबह (ब्रह्म मुहूर्त में)लहरतारा नामक सरोवर में काशी के बाहर जंगल में मैं नवजात शिशु का रुप धारण करकेकमल के फूल पर लेटा था। मैं अपने इसी स्थान से गति करके गया था। नीरु जुलाहा तथा उसकी पत्नी प्रतिदिन उसी तालाब पर स्नानार्थ जाया करते थे। उस दिन मुझे बालक रुप में प्राप्त करके अत्यन्त खुश हुए। मुझे अपने घर ले गए। मैंने 25 दिन तक कुछ भी आहार नहीं किया था। तब शिवजी एक साधु के वेश में उनके घर गए। वह सब मेरी प्रेरणा ही थी।
शिव से मैंने कहा था कि मैं कंवारी गाय का दूध पीता हूँ। तब नीरु एक बछिया लाया। शिव को मैंने शक्ति प्रदान की, उन्होंने बछिया की कमर पर अपना आशीर्वाद भरा हाथ रखा।
कंवारी गाय ने दूध दिया। तब मैंने दूध पीया था। मैं प्रत्येक युग में ऐसी लीला करता हूँ।
जब मैं शिशु रुप में प्रकट होता हूँ, तब कंवारी गायों से मेरी परवरिश की लीला हुआ करती है।
हे गरीब दास! चारों वेद मेरी महिमा का गुणगान करते हैं।
वेद मेरा भेद है, मैं ना वेदन के मांही। जौन वेद से मैं मिलूं, वह वेद जानते नाहीं।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्रा 9 में लिखा है कि जब परमेश्वर शिशु रुप में पृथ्वी
पर प्रकट होते हैं तो उनकी परवरिश की लीला कंवारी गायों द्वारा होती है। मैं सत्ययुग में
‘‘सत्यसुकृत’’ नाम से प्रकट हुआ था। त्रोतायुग में ‘‘मुनीन्द्र’’ नाम से तथा द्वापर में
‘‘करुणामय’’ नाम से और संवत् 1455 ज्येष्ठ सुदी पूर्णमासी को मैं कलयुग में ‘‘कबीर’’नाम से प्रकट व प्रसिद्ध हुआ था ।
भारत देश (जम्बू द्वीप) के काशी नगर (बनारस) में नीरु-नीमा नाम के पति-पत्नी थे। वे मुसलमान जुलाहा थे। वे निःसंतान थे।
गरीब दास जी को परमात्मा कबीर साहेब ने अपने प्रकट होने की लीला बताई 👇👇👇
ज्येष्ठ सुदी पूर्णमासी की सुबह (ब्रह्म मुहूर्त में)लहरतारा नामक सरोवर में काशी के बाहर जंगल में मैं नवजात शिशु का रुप धारण करकेकमल के फूल पर लेटा था। मैं अपने इसी स्थान से गति करके गया था। नीरु जुलाहा तथा उसकी पत्नी प्रतिदिन उसी तालाब पर स्नानार्थ जाया करते थे। उस दिन मुझे बालक रुप में प्राप्त करके अत्यन्त खुश हुए। मुझे अपने घर ले गए। मैंने 25 दिन तक कुछ भी आहार नहीं किया था। तब शिवजी एक साधु के वेश में उनके घर गए। वह सब मेरी प्रेरणा ही थी।
शिव से मैंने कहा था कि मैं कंवारी गाय का दूध पीता हूँ। तब नीरु एक बछिया लाया। शिव को मैंने शक्ति प्रदान की, उन्होंने बछिया की कमर पर अपना आशीर्वाद भरा हाथ रखा।
कंवारी गाय ने दूध दिया। तब मैंने दूध पीया था। मैं प्रत्येक युग में ऐसी लीला करता हूँ।
जब मैं शिशु रुप में प्रकट होता हूँ, तब कंवारी गायों से मेरी परवरिश की लीला हुआ करती है।
हे गरीब दास! चारों वेद मेरी महिमा का गुणगान करते हैं।
वेद मेरा भेद है, मैं ना वेदन के मांही। जौन वेद से मैं मिलूं, वह वेद जानते नाहीं।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्रा 9 में लिखा है कि जब परमेश्वर शिशु रुप में पृथ्वी
पर प्रकट होते हैं तो उनकी परवरिश की लीला कंवारी गायों द्वारा होती है। मैं सत्ययुग में
‘‘सत्यसुकृत’’ नाम से प्रकट हुआ था। त्रोतायुग में ‘‘मुनीन्द्र’’ नाम से तथा द्वापर में
‘‘करुणामय’’ नाम से और संवत् 1455 ज्येष्ठ सुदी पूर्णमासी को मैं कलयुग में ‘‘कबीर’’नाम से प्रकट व प्रसिद्ध हुआ था ।
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अपने मनुष्य जीवन का असली उद्देश्य क्या है जाने